सोमवार, 28 जुलाई 2025

गैलाटिया

पिग्मेलियन विलक्षण मूर्तिकार था । उसकी सृजन धर्मिता और देवत्व के प्रति भक्ति भाव, प्रेम की परिवर्तनकारी धारणा पर दैवीय हस्तक्षेप के विश्वास पर आधारित थी । महिलाओं के प्रति उसमें गहन निराशा और अनासक्ति का भाव मौजूद था । स्थानीय निवासियों मे से कुछ के अनैतिक व्यवहार से उसका मन आहत था अस्तु उसने अपनी कला को रोमांटिक गतिविधियों से पृथक करते हुए अपनी सम्पूर्ण भावनात्मक ऊर्जा को मूर्ति शिल्प से जोड़ दिया था । उसने महसूस किया कि उसके इर्द गिर्द की दुनियां में कुछ कमियां  हैं ।  जिसे उसके दक्ष हाथ नव सृजन के माध्यम से दूर कर सकते हैं । उसने नश्वर महिलाओं और उनकी कमियों को स्त्री संपूर्णता के नजरिये से देखते हुए मूर्ति कला को नए आयाम दिए ।

चिंतन के ऐसे ही किसी एक अवसर पर पिग्मेलियन ने हाथी दांत में अलौकिक सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति उकेरी । उस मूर्ति में उसकी समस्त दक्षता और भावनात्मक ऊर्जा समाहित थी । उसने छेनी की हरेक खटक के साथ सूक्ष्मतम परिशोधन किए, यहां तक कि हाथी दांत का ठंडापन, अनुग्रह और जीवंतता में परिवर्तित नजर आने लगा । उसने मूर्ति को गैलाटिया नाम दिया । वैसे तो पिग्मेलियन रूमानियत से अनासक्त था पर उसने इस मूर्ति में यौवन की रेखाओं और वक्रता को उनकी संपूर्णता के भाव से गढ़ा । यह मूर्ति कृत्रिम से दिव्यता की दिशा में बदलती गई । ना जाने क्यों, पिग्मेलियन इस मूर्ति के प्रति अनुरक्त होने लगा था जैसे कि यह कोई जीवंत स्त्री हो ।

उसने उस मूर्ति को समुद्री शंख, चमकीले फूलों, चमकदार गहनों और शानदार कपड़ों से सजाया, जैसे कि वो किसी खूबसूरत युवती को उपहार देकर प्रसन्न करना चाहता हो । महिलाओं के प्रति  आलोचनात्मक  चिंतन करने वाला पिग्मेलियन अपनी ही कृति पर मोहित हो चला था ।  प्रेम की देवी एफ़रोडाइट, पिग्मेलियन के बदलते हुए स्वभाव और जुनून से प्रभावित हुई । एफरोडाइट पिग्मेलियन की आराध्य देवी थी इसलिए अपनी भावनात्मक कशमकश को लेकर वो, एफरोडाइट के मंदिर में जा पहुंचा और उसने देवी के सम्मुख एक बैल  की आहुति दी । बलि देते ही वेदी से तीन बार अलग अलग लपटें उठीं तो वो समझ गया कि देवी ने उसकी बलि  स्वीकार कर ली है ।

मंदिर से लौटने के बाद, वेदी की पवित्र लपटों से मिले रहस्यमय संकेतों ने उसमे आशा का संचार कर दिया था । उसने मूर्ति को अपनी बांहों में भर लिया । उसे महसूस हुआ कि मूर्ति अब हाथी दांत जैसी सख्त और ठंडी नहीं है । उसमें नारियोचित ऊष्मा और कोमलता है । उसने अपने अंदर प्रेमानुभूति का ज्वार उमड़ता पाया और मूर्ति के ओंठों को चूम लिया । देवी एफरोडाइट ने उसकी कला को अद्भुत उपहार दिया था । ये अप्रतिम सौन्दर्य की स्वामिनी गैलाटिया थी । जीती जागती सुंदर युवती जिसने पिग्मेलियन के हृदय को प्रेम से भर दिया था ।

इस ग्रीक आख्यान से, प्रेम के प्रति किंचित उदासीन, सृजनहारे और प्रकृति सह देवत्व के संबंध उद्घाटित होते हैं । देवत्व उसे पुरस्कृत करता है और उसकी शुष्क हो चली भावनाओं को जीवंत करता है । संभवतः पिग्मेलियन ने व्यक्तिगत जीवन में स्त्रियों से छल पाए होंगे अतएव उसने स्वयं के जीवन में, मूर्तिकला की दक्षता का असीमित विस्तार किया । स्त्रियों से प्रेम के लिए उसकी धारणाएं विरक्ति प्रधान हो चलीं थीं तो उसने अपने हाथों को सृजन धर्मिता की आसक्ति से जोड़ लिया । एक ओर ये कथा पिग्मेलियन के निज संसार में स्त्रियों के फिसलते स्थान और मूर्ति कला के सुदृढ़ होते आयाम का प्रकटीकरण करती है तो दूसरी ओर उसके मन के किसी कोने में स्त्रियों और प्रेम की मौजूदगी का एहसास भी कराती है ।

कथनाशय यह है कि स्त्रियां नैसर्गिकता हैं, प्रकृति का अमिट अंश हैं और हरेक जीवित सत्ता के अंदर मौजूद बनी रहती हैं भले ही उनके प्रति निराशा और वैराग्य की सतही अभिव्यक्ति होती रहे । पिग्मेलियन स्त्रियों के प्रति अनासक्ति का दिखावा तो करता है पर हाथी दांत पर नक्काशी करते हुए वो, स्त्री देह की बारीक से बारीक सरल और वक्र रेखाओं को अद्भुत दक्षता के साथ उकेरता है । स्पष्ट संकेत यह है कि, उसमे यौन लालसाएं पूर्णतः भस्मीभूत नहीं हुई हैं । वो उस मूर्ति के प्रति मोहासक्त है, उसे जीवित देखना चाहता है । उसने मूर्ति को सुंदर से सुंदर गहनों, वस्त्रों और फूलों से सजाया है जैसे कि वो उसकी प्रेयसी हो । मूर्ति का शृंगार करते हुए वो जड़ कलाकृति के सजीव स्त्री होते जाने को महसूस करता है। उसकी अनासक्ति, आसक्ति में तिरोहित होती जाती है ।

मूर्ति को बहु विध उपहार देते हुए, उसके वैराग्य का क्षरण होने लगता है और उसे प्रतीत होता है कि प्रेम अब भी उसके अंतस में जिंदा है । वो हाथी दांत की बेजान और ठंडी मूर्ति को जीवित स्त्री की कोमलता और ऊष्मा के साथ जीना चाहता है, सम्मोहित सा । उसे मूर्ति के, सचमुच की स्त्री होते जाने का एहसास है और वो प्रेम की देवी एफरोडाइट का सकारात्मक हस्तक्षेप चाहता है। वो अपने सृजन, गैलाटिया संग नवजीवन चाहता है, एक प्रेमी और प्रेयसी का, पति और पत्नि का । देवी एफरोडाइट, पिग्मेलियन के परिवर्तित स्वभाव से प्रसन्न है और पिग्मेलियन के जीवन में दिव्य हस्तक्षेप करती है । फलस्वरूप गैलाटिया, प्रेम की देवी एफरोडाइट का जीता जागता उपहार बन जाती है । पिग्मेलियन की प्रेम रिक्तता, प्रेम सिक्तता मे बदल जाती है । कहते हैं प्रेम, मरुथल को नखलिस्तान कर देता है ।